अनुरागिनी
अनुरागिनी ये मन का नगर जो खाली पड़ा है यौवन मेरा अब कहने लगा है। दूँ मैं निमंत्रण किसी रुपसी को, जगती में ढूँढू किसी सहचरी को। मेरे घट सदन की वही शालिनी हो, अवनि में मेरी भी अनुरागिनी हो। ✍️
Literature
•
20
Feb 2024 9:45 PM
•
•
Literature
•
•
•